राजनांदगांव

क्या प्रथम नागरिक राजनांदगांव का मधुसूदन यादव का अपमान : भोजवानी प्रवेशद्वार के शिलालेख से नाम गायब, शहर में उठे साजिश के सवाल जिम्मेदार प्रोटोकॉल अधिकारी आयुक्त को बर्खास्त की मांग।

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राजनांदगांव में जन्माष्टमी पर विवाद की चिंगारी उठी जिसमें 

भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर जहां पूरा शहर उत्साह में डूबा रहा, वहीं यादव समाज और शहर के प्रथम नागरिक महापौर मधुसूदन यादव के लिए यह दिन आत्मग्लानि और पीड़ा लेकर आया होगा। क्योंकि यादव समाज की पहचान बनी भव्य शोभायात्रा और भोजवानी प्रवेशद्वार के भूमिपूजन कार्यक्रम के बीच महापौर का नाम शिलालेख से गायब कर दिया गया। क्या प्रोटोकाल अधिकारी निगम आयुक्त को जानकारी नहीं अगर है, तो स्थानीय नेता आयुक्त को हटाने क्या नगरीय निकाय मंत्री अरुण साव को पत्र लिखेंगे।

भोजवानी प्रवेशद्वार का भूमिपूजन का कार्यक्रम था।

 

पूर्व विधायक और वरिष्ठ भाजपा नेता स्व. लिलाराम भोजवानी की स्मृति में भव्य प्रवेशद्वार निर्माण का भूमिपूजन हुआ। इसी अवसर पर शोकसभा का आयोजन भी किया गया, जिसमें प्रदेश के बड़े नेताओं की मौजूदगी रही। कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह, सांसद संतोष पांडे, पूर्व सांसद अभिषेक सिंह, खुबचंद पारख, नीलू शर्मा, कोमल सिंह राजपूत, सचिन बघेल, पूर्व विधायक कोमल जंघेल सहित भाजपा के कई दिग्गज नेता मौजूद थे।

शिलालेख से नाम गायब, समर्थक नाराज़ आयुक्त निगम राजनांदगांव पर भड़के नेता 

इस भव्य आयोजन के बीच जब शिलालेख का अनावरण हुआ तो उसमें महापौर मधुसूदन यादव का नाम नदारद था। महापौर के समर्थकों में आक्रोश फैल गया। लोगों ने सवाल उठाया कि आखिर शहर के मुखिया प्रथम नागरिक और यादव समाज के प्रमुख चेहरे को क्यों नज़रअंदाज़ किया गया प्रोटोकाल अधिकारी निगम आयुक्त?

इस घटना ने शहर में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।

एक पक्ष इसे मात्र प्रशासनिक भूल मान रहा है जिसे सुधारा जा सकता है क्या।

वहीं दूसरा पक्ष इसे सोची-समझी साजिश बता रहा है, ताकि महापौर की राजनीतिक छवि को धूमिल किया जा सके।

यादव समाज में आक्रोश यादव समाज के लोगों का कहना है कि महापौर मधुसूदन यादव केवल भाजपा के नेता ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की पहचान हैं। कृष्ण जन्माष्टमी की भव्य शोभायात्रा उन्हीं की सोच और पहल का नतीजा है। ऐसे में उनका नाम शिलालेख से गायब करना पूरे समाज का अपमान है

संस्कारधानी राजनांदगांव में अब यह सवाल उठ रहा है कि—

क्या यह वास्तव में एक साधारण भूल है?

या फिर किसी गुटबाजी और राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा?

क्या किसी ने महापौर को जानबूझकर हाशिये पर धकेलने की कोशिश की है इस साजिश में निगम आयुक्त क्यों?

जन्माष्टमी का दिन, जो सद्भाव और उत्सव का प्रतीक है*, इस बार राजनांदगांव में विवाद की वजह बन गया। शिलालेख से महापौर मधुसूदन यादव का नाम गायब होना अब केवल व्यक्तिगत मुद्दा नहीं रह गया, बल्कि इसे शहर और समाज की अस्मिता से जोड़ा जा रहा है।

अब देखना यह है कि इसे भूल मानकर सुधारा जाएगा या फिर यह विवाद राजनांदगांव की राजनीति में नई दरार की शुरुआत करेगा देखना होगा निगम आयुक्त राजनांदगांव पर इस भूल पर विधानसभा अध्यक्ष क्या कारवाही करती है।

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